परोपकार पर निबंध – Paropkar Essay in Hindi

परोपकार अर्थात पर + उपकार। पर का अर्थ है दूसरा तथा उपकार का अर्थ है भलाई। इस तरह परोपकार का अर्थ हुआ – दूसरों की भलाई करना

परोपकार एक सामाजिक भावना है। इसी के सहारे हमारा सामाजिक जीवन सुखी और सुरक्षित रहता है। परोपकार की भावना से ही हम अपने साथियों, मित्रों, परिचितों और अपरिचितों को निस्वार्थ सहायता करते हैं।

परोपकार पर निबंध – Paropkar Par Nibandh in Hindi

paropkar par nibandh

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है – परहित सरिस धर्म नहीं भाई। अर्थात परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है। मैथिलीशरण गुप्त जी भी यही कहते हैं –

मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे

यह पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे।

वास्तव में मनुष्य वही है जिसका हृदय मानवीय गुणों से भरा हो। उसमें दूसरों के लिए दया और करुणा की भावना हो। बचपन में सिद्धार्थ लोगों के दुख को देख कर स्वयं दुखी हो उठा।

उसके हृदय में लोगों को इस दुख से छुटकारा दिलाने की भावना जाग उठी और अंततः उन्होंने लोगों को इस दुख से छुटकारा पाने का उपाय भी बताया।

इसके पीछे और कुछ नहीं बल्कि परोपकार की भावना ही थी। सिद्धार्थ ने दूसरों के लिए अपने सभी सुखों को त्याग कर दिया और गौतम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए।

प्रकृति भी हमें परोपकार की शिक्षा देती है। सूर्य हमें प्रकाश देता है, चंद्रमा अपनी चाँदनी छिटकाकर शीतलता प्रदान करता है, वायु निरंतर गति से बहती हुई हमें जीवन देती है तथा वर्षा का जल धरती को हरा-भरा बनाकर हमारी खेती को लहलहा देती है।

प्रकृति से परोपकार की शिक्षा ग्रहण कर हमें भी परोपकार की भावना को अपनाना चाहिए। भारत देश अपनी परोपकारी परंपरा के लिए जगत प्रसिद्ध रहा है।

भगवान शंकर ने समुद्र-मंथन में मिले विष का पान करके धरती के कष्ट को स्वयं उठा लिया था। महर्षि दधीचि ने राक्षसों के नाश करने के लिए अपने शरीर की हड्डियां तक दान कर दी थी।

दूसरे का कल्याण करने से परोपकारी की आत्मा विस्तृत हो जाती है। परोपकार करने से आत्मा को सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। परोपकारी को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

परोपकार के इस आनंद की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था –

“स्वार्थी बाहरी रूप से भले ही सुखी दिखाई पड़ता है, परन्तु उसका मन दुखी और चिंतित रहता है।” सच्चा आनंद तो परोपकारियों को प्राप्त होता है।

संसार में आज जितने भी मनुष्य महापुरुष कहलाने योग्य हुए हैं, उन सभी में परोपकार के गुण थे। सच तो यह है कि परोपकार की भावना से ही उन्हें महापुरुषों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया गया।

परोपकार मनुष्य जीवन को सार्थक बनाता है। अतः हमें भी परोपकारी बनना चाहिए। दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। जीवन की सार्थकता इसी में है।

परोपकार पर निबंध – Paropkar Essay in Hindi

अठारहों पुराणों में ब्यास के दो ही सार वचन है – परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। गोस्वामी तुलसीदास ने इस प्रकार कहा है कि –

परहित सरिस धरम नहि भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।

परोपकार सर्वमंगल की भूमिका है। परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण के लिए ‘स्व’ की बलि दे देना ही परोपकार का सुंदर लक्ष्य है, पवित्र साधन है।

परोपकार हेतु यह आवश्यक है कि व्यक्ति पहले अपने में सामर्थ्य उत्पन्न कर ले। यह समर्थ है त्याग और बलिदान की। दीपक स्वयं नहीं जलता तब तक वह दूसरे को आलोक (प्रकाश) नहीं दे सकता।

रात के सन्नाटे में सोती और स्वप्न निहारती यशोधरा को छोड़कर चले जाने वाले सिद्धार्थ स्वार्थी नहीं कहा जा सकते, क्योंकि लोक-कल्याण हेतु उन्हें पहले सिद्धि की योग्यता उत्पन्न करनी थी।

परोपकारी व्यक्ति का दिल दरिया होता है। तन-मन हरण दूसरों की चिंता में रमा रहता है। उसका हृदय स्वच्छ मंदिर बन जाता है। संपत्ति की महत्ता इसी में है कि वह सबका हित करें। जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में श्रद्धा मनु को उपदेश देती है –

औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ। अपने सुख को विस्मृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।।

हमारी संस्कृति का मूल भाव था परोपकार। दूसरे को हंसते देखकर अपना दुख भूल जाने का सहज भाव हमारी संस्कृति में निहित था। परोपकार की भावना स्वर्ग की सीढ़ी है।

स्वार्थ पशुता का आधार है, यह अवनीति के गहरे गड्ढे में धकेल देता है, पर परोपकार सार्वभौम कल्याण के प्रशस्त प्रगति-पथ पर आगे बढ़ता है। परोपकार मानवमात्र का उच्चतम गुण और आभूषण है।

Final Thoughts – 

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