इस दुनिया सभी लोगों की रुचि की विभिन्नता हमारी स्वाभिकता है। इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का रुचि अलग अलग हो सकता है। किसी को एक पुस्तक पसंद है, किसी को अन्य पुस्तक।
जहां तक मेरा प्रश्न है, यदि कोई पूछता है कि मुझे कौन-सी पुस्तक पसंद है तो तुरंत बिना किसी हिचक के कह देता हूँ – “रामचरितमानस”। मुझे तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ बहुत ही पसंद है और यह पुस्तक मेरे जीवन की नस नस में व्याप्त हो गई है।
Meri Priya Pustak Essay in Hindi –
सारी दुनिया जानती है कि ‘रामचरितमानस’ भारत का ही नहीं, सारे संसार का अमर काव्य है। संसार में उंगली पर गिनी जानेवाली पुस्तकों के नामों में ‘रामचरितमानस‘ भी एक है।
महात्मा गांधी ने इसे सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना है। देश-विदेश के विभिन्न भाषाओं में इसका अनुवाद होना इस पुस्तक की लोकप्रियता और महत्ता प्रकट करता है।
‘रामचरितमानस’ तुलसीदास की अन्यतम रचना है। इस काव्य में भक्ति की गंगा, नीति की यमुना और सदुपदेश की सरस्वती प्रवाहित होती है। संस्कृति, सभ्यता और कला के इस त्रिवेणी संगम पर विश्व मानवता का क्षीरसागर उमड़ पर रहा हैं।
कोई भी इसके दर्शन, मज्जन और पान से लोक-परलोक दोनों के लिए अपने मार्ग प्रशस्त कर सकता है। रामचरितमानस में राजा राम की कहानी है।
इसमें रामराज का वर्णन है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। वह भगवान के अवतार हैं। उन्होंने धरा-धाम पर जन्म लेकर बढ़ते हुए असुरों का, आनाचारों का, अत्याचारों का विनाश किया।
अभूतपूर्व पितृभक्ति की शिक्षा दी और समस्त समाज में मर्यादा की स्थापना कर विश्व-मानवता का सिर ऊंचा किया। संसार में जो सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ मर्यादा है, कवि ने उसी की स्थापना इस ग्रंथ में की है।
रामचरितमानस भारतीय भक्ति का मुकुट है। इसमें पवित्र जीवन स्पंदन की प्रेरणा है। नवरस और अलंकारों से युक्त रामायण के पन्ने तुलसी-दल के समान पवित्र और मोक्ष दायक हैं।
उन्हें पढ़कर हम असत से सत की ओर, तम से ज्योति की ओर, मृत से अमृत की ओर बढ़ते हैं। यह एक महाकाव्य है और सात कांडों में बंटा है। पंक्ति-पंक्ति में मानवता के गुणों का संजीव अंकन है।
शब्द-शब्द में जीवन के लिए विराट संदेश है। दोहे और चौपाईयों के बीच-बीच में सोरठा छंद आदि का प्रयोग, कथन को और स्पष्ट और सशक्त बना देता है। इसकी भाषा अवधि है।
तुलसीदास भक्त थे, ज्ञानी कवि थे, समाज सुधारक थे और विश्व कल्याण का स्वप्न देखने वाले सच्चे साधक थे। वे समन्वयवादी थे। उन्होंने संस्कृति के बिखरे तारों को सहेजा, उन्हें अपनी प्रतिभा से समन्वित किया और रामचरितमानस में उन आदर्शों को वाणी प्रदान की।
कथा के रूप में राम और रावण-युद्ध की चर्चा की गई है। रावण असुरों का, राक्षसों का, चरित्रभ्रस्ट, पशुवृति वाले व्यक्तियों का प्रतीक है। राम प्रतीक है अच्छे व्यक्तियों के।
धर्म और अधर्म में लड़ाई छिड़ी। धर्म जीता और अधर्म की पराजय हुई। दुनिया से छल, द्वेष, दुस्टता, हिंसा, अन्याय आदि का बोलबाला समाप्त हो गया।
रावण की हार बुरे तत्वों की, बुरे भावों की, बुरी बातों की हार है। तुलसीदास ने अपनी पुस्तक में इन सहज और स्वाभाविक आदर्श को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। इसमें भारतीय दर्शन और हमारे जीवन-दर्शन को प्रस्तुत किया गया है।
रामचरितमानस हमारा संस्कृतिक इतिहास है। हमारा अध्यात्मिक दर्शन है, हमारी सभ्यता की उपलब्धि है। मेरे विचार से ऐसा ग्रंथ ‘न भूतो न भविष्यति’।
मेरी मान्यता है – जब तक सूरज और चांद रहेंगे, विश्व-सभ्यता रहेगी और मानव संस्कृति रहेगी तब तक रामचरितमानस सकल मानव समाज के पथ को ज्योति देता रहेगा। यही कारण है कि रामचरितमानस मेरी मनोवांछित पुस्तक है – सबसे सुंदर!
Final Thoughts –
आप यह भी पढ़ सकते हैं –
- मेरा प्रिय मित्र पर निबंध – Essay on My Favourite Friend in Hindi
- मेरा प्रिय खेल पर निबंध – Essay on My Favourite Sports in Hindi