स्वर संधि
स्वर संधि (Swar Sandhi) – दो स्वर वर्णों के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
जैसे –
महा + आशय = महाशय।
नर + इन्द्र = नरेन्द्र।
वधू + उत्सव = वधुत्सव।
सु + आगत + स्वागत।
स्वर संधि के प्रकार – Types of Swar Sandhi
स्वर संधि के पाँच प्रकार होते हैं जो की निम्नलिखित हैं –
1 . दीर्घ संधि,
2 . गुण संधि,
3 . वृद्धि संधि,
4 . यण संधि, एवं
5 . अयादि संधि।
***************************
1 . दीर्घ संधि के नियम :-
(क.) यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’, ‘आ’ के बाद ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’ ‘आ’ आये, तो दोनों के स्थान पर ‘आ’ हो जाता हैं।
जैसे –
अ + अ = आ >>> अन्न + अभाव = अन्नाभाव।
आ + अ = आ >>> विद्या + अर्थी + विद्यार्थी।
(ख.) यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’ ‘ई’ के बाद ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’ ‘ई’ आये तो दोनों मिलकर ‘ई’ हो जाती हैं।
जैसे –
इ + ई = ई >>> गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र।
ई + ई = ई >>> मही + ईस्वर = महीईस्वर।
(ग.) यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘उ’ ‘ऊ’ के बाद ह्रस्व या दीर्घ ‘उ’ ‘ऊ’ आवे तो दोनों मिलकर दीर्घ ‘ऊ’ हो जाते हैं।
जैसे –
उ + उ = ऊ >>> विधु + उदय = विधूदय।
ऊ + उ = ऊ >>> वधु + उत्सव = वधूत्सव।
2 . गुण संधि के नियम :-
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ, ई, उ, ऊ या ऋ आवे, तो वे मिलकर क्रमशः ए, ओ और अर् हो जाते है। अर्थात ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘उ’ या ‘ऊ’
मिलकर ‘ओ’ हो जाते हैं और ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ मिलकर ‘अर्’ हो जाते हैं।
जैसे –
(क.)
अ + इ = ए >>> नर + इन्द्र = नरेन्द्र।
आ + इ = ए >>> महा + इन्द्र = महेन्द्र।
(ख.)
अ + उ = ओ >>> चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय।
आ + उ = ओ >>> महा + उत्सव = महोत्सव।
(ग.)
अ + ऋ = अर् >>> देव + ऋषि = देवर्षि।
आ + ऋ = अर् >>> महा + ऋषि = महर्षि।
3 . वृद्धि संधि के नियम :-
(क.) यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आवे, तो दोनों स्थान पर ‘ऐ’ हो जाता हैं।
जैसे –
अ + ए = ऐ >>> एक + एक = एकैक।
आ + ऐ = ऐ >>> तथा + एव = तथैव।
(ख.) यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ आवे, तो दोनों के स्थान पर ‘औ’ हो जाता है।
जैसे –
अ + औ = औ >>> वन + औषधि = वनौषधि।
आ + ओ = औ >>> महा + औषधि = महाषधि।
4 . यण संधि के नियम :-
(क.) यदि ‘इ’ ‘ई’ के बाद इ-ई को छोड़ कोई दूसरा स्वर हो, तो इ-ई के स्थान पर ‘य’ और प्रथम पद का अंतिम वर्ण आधा हो जाता है।
जैसे –
दधि + आनथ = दध्यानय।
नारी + उक्ता = नायुर्क्ता।
(ख.) यदि ‘उ’ या ‘ऊ’ के बाद ‘उ’ और ‘ऊ’ को छोड़कर दूसरा स्वर हो, तो ‘उ’ या ‘ऊ’ के स्थान पर ‘व्’ तथा प्रथम पद का अंतिम वर्ण आधा हो
जाता है।
जैसे –
अनु + अय = अन्वय।
सु + आगत = स्वागत।
(ग.) यदि ‘ऋ’ या ‘ऋ’ के बाद ‘ऋ’ या ‘ऋ’ के अतिरिक्त कोई ‘अन्य’ स्वर आये, तो ‘ऋ’ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है।
जैसे –
मातृ + आनन्द = मात्रानन्द।
पितृ + आदेश = पित्रादेश।
5 . अयादि संधि के नियम :-
यदि ‘ए, ऐ, ओ, औ’ के बाद कोई अन्य स्वर हो, तो इनके स्थान पर क्रमशः ‘अय, आय, अव और आव’ हो जाते हैं अर्थात ए का य, ऐ का आय,
ओ का अव, और औ का आव हो जाता हैं।
जैसे –
ए + अ = अय >>> ने + अन = नयन।
ऐ + अ = आय >>> गै + अक = गायक।
ओ + अ = अव >>> भो + अन = भवन।
औ + उ = आव >>> भौ + उक = भावुक।
आदि।