ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming Essay in Hindi

आज के इस हिंदी निबंध के आर्टिकल में आप वर्त्तमान समय की एक गंभीर समस्या ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) पर निबंध पढ़ सकते हैं।

जिसमें हम ग्लोबल वार्मिंग होने के कारण एवं इसके प्रभाव के बारे में पढ़ेंगे और ऐसे कैसे ठीक किया जा सकता हैं इसके बारे में भी।

हमने अपने पिछले हिंदी निबंध के आर्टिकल में टेलीविज़न और पुस्तकालय पर निबंध हिंदी भाषा में पढ़ा था।

अगर आपने इसके बारे में नहीं पढ़ा हैं तो इसे भी जरूर पढ़े। अब हम आज का यह आर्टिकल Global Warming Par Nibandh in Hindi को शुरू करते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming Essay in Hindi

Global Warming का हिंदी में मतलब ” भूमण्डलीय तापवृद्धि ” होता हैं। भूमण्डलीय तापवृद्धि का मतलब होता हैं हमारे भूमंडल अर्थात पृथ्वी का तापमान समय के साथ आवश्यकता से अधिक बढ़ जाना।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण –

भूमण्डलीय तापवृद्धि के निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं –

1 . कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस की मात्रा में वृद्धि : वर्ष, 2000 तक वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड की सान्द्रता 280 ppm (280 कार्बन डाइऑक्साइड का अणु प्रति मिलियन हवा के अणु में) थी जो इस समय तक बढ़कर 368 ppm हो गयी है।

इसका प्रमुख कारण उद्योगों का बेतहाशा विस्तार है। कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि का कारण जैव ईंधनों को जलाया जाना भी है।

अगर मनुष्य इसी तरह जैव ईंधनों को जलाते रहा तथा वर्तमान दर से वनों की कटाई भी जारी रही तो कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि भविष्य में चिंताजनक स्थिति में पहुंच जायेगी।

फलस्वरुप वैश्विक ताप में अप्रत्याशित रुप से वृद्धि होगी जिसका विश्व की जलवायु और जीवन पर व्यापक असर पड़ेगा।

2 . क्लोरोफ्लोरोकार्बन की मात्रा में वृद्धि : वैश्विक ताप वृद्धि में इस गैस का भी बहुत बड़ा योगदान है। क्लोरोफ्लोरो कार्बन से पृथ्वी के स्थायित्व की सबसे अधिक खतरा है।

यह गैस अज्वलनशील, अविषाक्त और अत्यधिक स्थायी है। यह मैस कृत्रिम गैसों के अवयव, जैसे कार्बन तथा हैलोजेन से बनी है।

कार्बन के मुख्य स्रोतों में रिसावयुक्त वातानुकूलन संयंत्र, फ्रीज तथा औद्योगिक विलायकों का वाष्पीकरण, प्लास्टिक फोम का में बना रह सकता है।

1990 ई तक वायुमंडल में इसकी सान्द्रता 484 PPTV थी जो 2000 ई के अंत तक बढ़कर 525 PPTV तक पहुंच गयी है।

वायुमंडल में इस गैस की मात्रा 4% की दर से प्रति वर्ष बढ़ रही है। 1980 से 1990 ई तक की एक दशक की अवधि में पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में इस गैस का योगदान 17% से अधिक रहा है।

ग्रीन हाउस प्रभाव की वृद्धि में इस गैस और हैलोजन गैस का योगदान 90% से भी अधिक है।

3 . नाइट्रस ऑक्साइड गैस की मात्रा में वृद्धि : विभिन्न कारणों से वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। फलस्वरुप मानवकृत ग्रीन हाउस प्रभाव 6% तक बढ़ा है।

नाइट्रस ऑवसाइड की वार्षिक वृद्धि दर 0.2% से 0.3% प्रति वर्ष है। नाइट्रस ऑक्साइड का मुख्य स्रोत, कृषि, जैव-भार (Biomass) का जलना तथा औद्योगिक क्रियाएँ हैं।

N2O और नायलॉन के उत्पादन से, नाइट्रोजन युक्त ईंधन से मवेशियों के उत्सर्ग (Excrete) तथा भूमि में नाइट्रोजन धनी उर्वरकों के टूटने से तथा नाइट्रेट संक्रमित सतही जल से होता है।

नाइट्रस ऑक्साइड अल्प मात्रा में होते हुए भी CO2 से 250 गुणा अधिक खतरनाक गैस है। वायुमंडल में इसकी जीवनावधि लगभग 150 वर्षों की होती है।

4 . मीथेन गैस की मात्रा में वृद्धि : मीथेन गैस की मात्रा में वृद्धि के कारण भी भूमण्डलीय ताप में वृद्धि की आशंका बढ़ गयी है।

वर्तमान समय में वायुमंडल में मीथेन गैस की सान्द्रता दोगुनी बढ़ गयी है। उद्योगीकरण के पूर्व वायुमंडल में इस गैस की सान्द्रता 0.700 ppb थी।

उद्योगों के विस्तार के पश्चात इसकी सान्द्रता में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है और वह बढ़कर 1750 ppb हो गयी है।

मीथेन अपूर्ण अपघटन का उत्पाद है एवं अनाक्सीय हालातों में मीथेनोर्जन जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होता है। मीठा जल, आर्द्र भूमि मीथेन उत्पादन के स्रोत है।

इसका कारण यह है कि कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीजन के अभाव तथा खराब पर्यावरण में अपघटन होने एवं दीमकों द्वारा मीथेन गैस का उत्पादन किया जाता है।

दीमक सेल्युलोज को पचा लेती है। बाढ़ के पानी के धान के खेतों में जमा होने और कच्छ क्षेत्रों में मीथोनोर्जन से अनाक्सी क्रिया द्वारा मीथेन गैस निष्कृत होती है।

इस प्रकार विभिन्न स्रोतों से 52.6 करोड़ टन प्रति वर्ष मीथेन गैस वायुमंडल में पहुंचती है। प्रतिवर्ष इसकी वृद्धि 7% है जबकि ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने में इसका योगदान 18% है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :

भूमण्डलीय तापवृद्धि से निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

(i) पर्यावरणीय प्रभाव : तापवृद्धि से पर्यावरण प्रभावित होता है। इन प्रभावों में ध्रुवों की बर्फ पिघलना मुख्य है।

इससे समुद्र तल में वृद्धि होती है और तटवर्ती नगरों के जलमग्न होने की स्थिति बन जाती है। इन क्षेत्रों के लोग दूसरे स्थानों में चले जायेंगे तो वहां आवास खाद्य आदि को लेकर संघर्ष हो सकते हैं।

तापमान में वृद्धि से चक्रवात और तेज तूफान उत्पन्न होते हैं जिनसे जान और माल की भारी हानि होती है। विशाल ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ पिघलने से भूसंतुलन में परिवर्तन होता है जिससे भूकंप आ सकते हैं और ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं।

(ii) जलवायु पर प्रभाव : भूमण्डलीय ताप वृद्धि जलवायु को प्रभावित करती है। जिससे खेती जल स्रोत, हाइड्रोइलैक्ट्रिक संयंत्र आदि प्रभावित होते हैं।

फसलें कम होने से अकाल पड़ता है। जल स्रोतों के कारण कृषि तथा पशुधन दोनों ही प्रभावित होते हैं। ऊर्जा देने वाले हाइड्रोक्लेक्ट्रिक संयंत्र के बंद होने से देश का विकास रुक जायेगा।

(iii) फसलों पर प्रभाव : तापमान वृद्धि के कारण पौधों से जल का वाष्पन तीव्र गति से होता है तथा मृदा में भी नमी देर तक नहीं रह पाती इससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। तापमान वृद्धि नाइट्रोजन स्थिरीकरण को भी प्रभावित करती है।

(iv) मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव : तापमान वृद्धि से लू चलती है जो घातक हो सकती है तथा मौसम के परिवर्तन से बीमारियाँ भी बढ़ सकती है।

Final Thoughts –

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