अपठित गद्यांश किसे कहते हैं। परिभाषा एवं उदाहरण

आज के इस आर्टिकल में आप हिंदी व्याकरण के चैप्टर अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh) के बारे में पढ़ सकते हैं।

इस आर्टिकल से पहले हमने कहानी लेखन और अवतरण लेखन किसे कहते हैं इसके बारे में पढ़ा था। अब हम आज का यह आर्टिकल शुरू करते हैं।

Apathit Gadyansh Kise kahate Hain

प्रायः परीक्षाओं में कोई अपठित गद्यांश दे दिया जाता है, जिसका सम्बन्ध पाठ्य-पुस्तक से नहीं रहता है। इस गद्यांश के नीचे उससे सम्बन्धित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं, उन प्रश्नों के उत्तर दिए गए गद्यांश से चुनकर लिखने का निर्देश होता है। इनके लिए नीचे लिखी बातों पर ध्यान देना चाहिए।

1 . दिए गए गद्यांश को ध्यान से दो-तीन बार पढ़ना चाहिए।

2 . प्रश्नों के उत्तरवाले अंशो पर चिह्न लगा देना चाहिए।

3 . प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में लिखने चाहिए।

4 . प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश से ही संबंधित होने चाहिए।

उदाहरण :

1 . नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर यथासंभव अपने शब्दों में दीजिये।

बिहार शरीफ, 16 सितम्बर (यू. एन. आई.) ।

विलम्ब से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार यहाँ से लगभग 95 किलोमीटर दूर मेहदैवा के पास सशस्त्र डाकुओं ने राज्य पथ परिवहन निगम की एक एक्सप्रेस बस के यात्रियों को लूटा। डाकुओं ने गोलियाँ भी चलाई, जिससे बस चालक और खलासी के अलावा 10 यात्री भी घायल हो गये। बताया जाता है कि डाकुओं का गिरोह जिनमें लगभग 30 डाकू थे, 50 कलाई घड़ियाँ और पच्चीस हजार रुपये से अधिक की रकम छीन कर चम्पत हो गये। घटना स्थल के निकटवर्ती अरवल थाने में एक मुकदमा दर्ज कराया गया। इस सम्बन्ध में अब तक किसी की गिरफ्तारी का समाचार प्राप्त नहीं हुआ है।

प्रश्न :

1. बिहार शरीफ से मेहदैया ग्राम कितनी दूर है ?

2. डाकुओं ने यात्रियों से क्या लूटा ?

3. इस लूट के समय कौन-कौन सी घटनाएँ घटीं ?

4. लूट के बाद क्या किया गया ?

5. डाकुओं ने किसे और कहाँ लूटा ?

उत्तर :

1. बिहार शरीफ से मेहदैया ग्राम 95 किलोमीटर दूर है 1

2 . डाकुओं ने 50 कलाई घड़ियाँ और 25 हजार रुपये के सामान लूटे।

3 . इस लूट के समय डाकुओं ने गोलियाँ चलाई जिससे बस का चालक, खलासी और 10 यात्री घायल हो गये।

4 . लूट के बाद अरवल थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया।

5 . डाकुओं ने राज्य पथ परिवहन निगम की एक बस के यात्रियों को बिहार शरीफ के मेहदैया ग्राम के निकट लूट लिया।


अभ्यास :

Apathit Gadyansh in Hindi Grammar

1 . गद्यांश

“तुलसीदास अरण्यकाण्ड सुना रहे हैं। जनता मंत्रमुग्ध होकर सुन रही है। उनके स्वर में ऐसा आकर्षण और वर्णन में ऐसी चित्रमयता है कि लोगों को लगता है कि मानो सारे दृश्य उनकी आँखों के आगे घट रहे हैं। महर्षि अत्रि के आश्रम में सीता-राम-लक्ष्मण का स्वागत होता है। अनुसूया सीता को उपदेश देती है। वन में रहनेवाले ऋषि-मुनि और तापस उनका अलौकिक रूप और बल देखकर उसमें परब्रह्म के दर्शन पाते है। तुलसीदास ने राम का ऐसा मार्मिक रूप आँका कि सुनने वालों के मन में उस सुन्दरता को देखने की ललक उनके प्राणों की सारी शक्ति समेटकर उन्हें भाव रूप राम के दर्शन कराने लगी। टोडर तो ध्यानलीन हो गए थे, अनाज-पैसे चढ़ने लगे। तुलसीदास भीड़ के जाने के बाद टोडर से बोले, “आज और कल सवेरे तक के लिए इतने दाल और चावल रखे लेता हूँ। बाकी सब गरीबों को बँटवाने की व्यवस्था आप कर दें और इन रुपये टकों का उपयोग वृद्ध, निःसहाय विधवाओं और दीन-दुखियों में बाँट कर करें।

प्रश्न :

(क) तुलसीदास किसकी कथा सुना रहे हैं ?

(ख) सुननेवालों में कैसी ललक उत्पन्न हुई ?

(ग) तुलसीदासजी निःसहायों के सहायक थे। कैसे ? (घ) तुलसी की कथा की कौन-कौन-सी विशेषताएँ है ?

(ङ) टोडर क्यों ध्यानलीन हो गए थे ?

उत्तर :

(क) श्रीराम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड की कथा जनता को सुना रहे हैं। महर्षि अत्रि के आश्रम में सीता-राम-लक्ष्मण का स्वागत होता है। माता अनुसूया सीता को उपदेश देती हैं। कथा वाचन इसी प्रसंग में हो रहा है।

(ख) तुलसीदास के स्वर में ऐसा आकर्षण और वर्णन में ऐसी चित्रमयता थी कि श्रोताओं को लगता था मानो सारे दृश्य उनकी आँखों के सामने घट रहे हो। तुलसीदास ने राम का ऐसा मार्मिक रूप प्रस्तुत किया कि सुननेवालों के मन में उस सुन्दरता को देखने की ललक उत्पन्न हुई।

(ग) तुलसीदास को कथा सुनाने के क्रम में फल-फूल, अनाज, पैसे प्रचुर मात्रा में मिलते थे। उनमें से वे अपनी आवश्यकतानुसार अन्न रख लेते थे। शेष फल फूल और अनाज गरीबों में बँटवा देते थे। रुपयों का उपयोग वे वृद्ध, निःसहाय, विधवा और दीन-दुखियों के लिए करते थे। इस रूप में वे निःसहायों के सहायक थे।

(घ) तुलसीदास की कथा-शैली में एक विशेष आकर्षण और विशिष्ट चित्रमयता थी। श्रोताओं को ऐसा प्रतीत होता था मानो सारे दृश्य उनकी आँखों के सामने घट रहे हो। कथा वर्णन में ऐसी मार्मिकता होती थी कि सुननेवालों के मन में श्रीराम की उस सुन्दरता को देखने की ललक उनके प्राणों को सम्पूर्ण शक्ति समेटकर उन्हें भाव रूप राम के दर्शन कराने लगती थी।

(ङ) तुलसीदास ने राम के अलौकिक और मार्मिक रूप का ऐसा वर्णन प्रस्तुत किया कि टोडर ध्यानलीन हो गए और भाव रूप राम के दर्शन करने लगे।

2 . गद्यांश

भय का जन्म अज्ञान से होता है। हम भयग्रस्त होते हैं क्योंकि हम अपनी दिव्य कार्य शक्ति, आशाओं और संभावनाओं के प्रति सजग नहीं रह पाते। हमारे भय का मुख्य कारण है कि हम अपने आप को एक पृथक् इकाई मानते हैं। अपनी सत्ता को हम ऐसा समझते हैं कि सृष्टिकर्त्ता ने इस ब्रह्माण्ड में संग्राम और संघर्ष करने के लिए अकेले फेंक दिया है। परन्तु वास्तविकता यह है कि हम उस कर्ता की विशाल योजनाओं के एक अभिन्न अंग मात्र हैं। हम उस समान सृजन शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण अंश हैं। हम रोग से भयभीत क्यों होते हैं ? क्योंकि हम नहीं जानते कि स्वास्थ्य ही हमारा जीवन है, यही हमारी स्वाभाविक दशा है। स्वास्थ्य के नियमों को जानकर भी अनदेखी करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए प्रयत्न नहीं करते। स्वास्थ्य से अधिक महत्त्व स्वाद को देते हैं। स्वास्थ्य के अभाव का ही नाम रोग है। प्रकाश के अभाव का नाम अंधकार है। अज्ञानता का ही दूसरा नाम भय है।

वास्तव में हम तुच्छ तब बनते हैं, जब हम भय को उस सर्वशक्तिमान से बड़ा मानकर उसके आगे झुकने लगते हैं और अपने स्रष्टा से संबंध-विच्छेद कर लेते हैं। यदि हम ऐसा न करें, तो हमारा जीवन अधिक ऊँचा, अधिक उदात्त और अधिक महान बन सकता है।

प्रश्न:

(क) रोग क्या है ?

(ख) हम क्या है ? हमें भय क्यों है ?

(ग) हम तुच्छ कब बनते है ?

(घ) हमारा जीवन और अधिक महान कैसे बन सकता है ?

(ङ) प्रकृति से हमारे जीवन का क्या संबंध है ?

उत्तर :

(क) स्वास्थ्य के नियमों की अवहेलना करना या स्वास्थ्य के अभाव का नाम रोग है ।

(ख) हम सृष्टिकर्ता की विशाल योजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। हमारी अज्ञानता के कारण ही हमें भय है। हम अपनी दिव्य कार्यशक्ति, आशाओं और संभावनाओं के प्रति सजग नहीं होते अतः हम भयभीत होते हैं। पुनः स्वास्थ्य ही हमारा जीवन है। यही हमारी स्वाभाविक दशा है, इस बोध की कमी के कारण भी हम भयभीत होते हैं।

(ग) हम तुच्छ तब बनते हैं, जब हम भय को उस सर्वशक्तिमान से बड़ा मानकर उसके आगे झुकने लगते हैं तथा अपने सृजनकर्ता या स्रष्टा से सम्बन्ध विच्छेद कर लेते हैं।

(घ) यदि हम भय को सर्वशक्तिमान से बड़ा न मानें और उसके आगे न झुके तथा अपने स्रष्टा से अपने सम्बन्ध विच्छेद न करें, तो हमारा जीवन अधिक महान बन सकता है। ऐसा करने पर ही हमारा जीवन अधिक उन्नत, अधिक उदात्त और अधिक महान बन सकता है।

(ङ) प्रकृति से हमारे जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति की अनेक वस्तुएँ हमारे लिए जीवनोपयोगी हैं। प्रकृति की अवहेलना कर न तो हम स्वस्थ रह सकते हैं और न ही सुखी। हमें प्रकृति से सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए। तभी हम प्रगति पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।

3 . गद्यांश

इस संसार में धन ही सब कुछ नहीं है, धन की पूजा तो बहुत कम जगहों में होती दिखाई गई है। संसार का इतिहास उठाकर देखिए और उदाहरण ढूंढ-ढूंढ़कर सामने रखिए तो आपको विदित हो जाएगा कि जिनकी हम उपासना करते हैं, जिनके लिए हम आँखें बिछाने के लिए तैयार रहते हैं, जिनकी स्मृति तरोताजा रखने के लिए हम अनेक तरह के स्मारक चिह्न बनवाकर खड़े करते हैं, उन्होंने रुपया कमाने में अपना समय नहीं बिताया था, बल्कि उन्होंने कुछ ऐसे काम किए थे जिनकी महत्ता हम रुपये से अधिक समझते हैं। जिन लोगों के जीवन का उद्देश्य केवल रुपया बटोरना है, उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है। अधिकांश अवस्था में उन्हें लोगों ने पूछा तक नहीं। उन्होंने जन्म लिया, रुपया कमाया और परलोक की यात्रा की। किसी ने जाना तक नहीं कि वे कौन थे और कहाँ गये ? मानव समाज स्वार्थी अवश्य है, पर वह स्वार्थ की उपासना करना नहीं जानता। अन्त में वे ही पूजे जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन को अर्पित करते समय सच्चे मनुष्य का परिचय दिया है।”

प्रश्न:

(क) संसार में किस प्रकार के मनुष्य की पूजा होती है ?

(ख) मन की पूजा से क्या अभिप्राय है ? (ग) संसार में धन के पुजारियों की क्या गति होती है ?

(घ) इस गद्यांश का उचित शीर्षक क्या हो सकता है ?

(ड) संसार के इतिहास का अवलोकन करने से क्या विदित होता है ?

उत्तर :

(क) संसार में वैसे ही मनुष्य की पूजा होती है, जिन्होंने अपना स्वार्थ त्यागकर मानव कल्याण के लिए अपने आप को अर्पित कर दिया तथा अपना परिचय मानवता की सेवा में लगते हुए दिया।

(ख) धन की पूजा का अभिप्राय है जीवन में धन को ही अधिक महत्त्व देना। आज अधिकांश व्यक्ति धन को ही अधिक प्रश्रय देते हैं और उसी के अधिकाधिक संग्रह में अपने जीवन को सार्थक मानते है।

(ग) धन के पुजारी स्वार्थी प्रवृत्ति के होते हैं। संसार में धन के पुजारियों का कोई सम्मान नहीं होता। वे तो धन बटोरने में ही अपने आप को सीमित कर लेते हैं। वे इस संसार में आते हैं और गुमनाम रहकर ही परलोक सिधार जाते हैं। जो संसार के लिए कुछ करते ही नहीं, उन्हें लोग जानेंगे कैसे ? नैतिक रूप से पतित व्यक्ति को समाज ठुकरा देता है।

(घ) शीर्षक: मनुष्यत्व और धन ।

(ङ) संसार के इतिहास का अवलोकन करने से यह ज्ञात होता है कि वैसे ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती है, जिन्होंने समाज सेवा में अपने आप को अर्पित कर दिया है। केवल धन-संग्रह को ही महत्त्व देने वाले स्वार्थी लोगों का समाज में कोई सम्मान नहीं। स्वार्थ त्यागकर समाज की सेवा के लिए स्वयं को अर्पित कर देना, धन-संग्रह की अपेक्षा अधिक मूल्यवान है।

4 . गद्यांश

“एक बार भगवान् बुद्ध श्रावस्ती में चातुर्मास कर रहे थे। वहाँ एक व्यक्ति आया जो सैनिक की वेश-भूषा में था। कमर में तलवार लटकी हुई थी। वह भगवान् बुद्ध से बोला महात्मन् । मुझे उपदेश करें कि स्वर्ग का रास्ता कौन-सा है और नरक का रास्ता कौन-सा है ? उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा – “तुम क्या करते हो ?” वह बोला- ‘देखते नहीं, मेरी देश-भूषा, मैं सैनिक हूँ।” बुद्ध ने कहा- “तुम सैनिक हो ? कितने गन्दे कपड़े पहने हो । तुम जैसे कायर व्यक्ति को किस मूर्ख राजा ने अपना सैनिक बना लिया।” भगवान् बुद्ध की बात सुनकर सैनिक को क्रोध आ गया। उन्होंने उससे फिर कहा- “कमर में तलवार बाँधे फिरते हो। दुनिया को दिखाते हो कि हम बड़े वीर है। तलवार भी भोथरी है। इससे तो मेरा सिर भी नहीं कटेगा।” सुनकर सैनिक का क्रोच अपनी सीमा लाँघ गया। वह अपनी तलवार निकालकर भगवान् बुद्ध पर बार करने को उद्यत हुआ। तब भगवान् बुद्ध ने बड़ी शान्ति और आत्मीयता से कहा-“यह नरक का मार्ग है। ”

सैनिक उनकी यह बात सुन संयम में आया। उसे अपनी भूल मालूम हुई। चरणों में गिर गया और क्षमा माँगने लगा। तब भगवान् बुद्ध ने कहा- “वत्स, यह है स्वर्ग का मार्ग। ”

प्रश्न :

(क) श्रावस्ती में भगवान् बुद्ध से मिलनेवाले व्यक्ति की वेश-भूषा कैसी थी ?

(ख) सैनिक का चेहरा क्रोध से क्यों लाल हो गया ?

(ग) सैनिक भगवान् बुद्ध पर वार करने को क्यों उद्यत हुआ ?

(घ) भगवान् ने नरक के मार्ग के विषय में क्या बताया ?

(ङ) भगवान् बुद्ध ने सैनिक को स्वर्ग के मार्ग के विषय में कब और क्या बताया ?

उत्तर :

(क) श्रावस्ती में भगवान् बुद्ध से मिलनेवाले व्यक्ति की वेश-भूषा सैनिक जैसी थी उसकी कमर में एक तलवार भी लटक रही थी।

(ख) भगवान् बुद्ध ने उस सैनिक से कहा कि वह बहुत गन्दे कपड़े पहने हुए है फिर उन्होंने उसे कायर कहा और उस राजा को भी मूर्ख कहा जिसने उस जैसे कायर को सैनिक बनाया भगवान् बुद्ध की यही बात सुनकर सैनिक का चेहरा क्रोध से लाल हो गया।

(ग) भगवान् बुद्ध ने सैनिक से कहा कि अपनी कमर में तलवार बाँधकर दुनिया को यह दिखाना चाहते हो कि तुम बड़े वीर हो तुम्हारी तलवार तो भोवड़ी है। इससे तो उनका भी सिर नहीं कटेगा। भगवान् बुद्ध की यह बात सुनकर सैनिक और भी क्रुद्ध हो गया और उनपर बार करने पर उद्यत हो गया।

(घ) जब सैनिक अत्यन्त क्रुद्ध होकर भगवान् बुद्ध पर तलवार से वार करने के लिए तत्पर हो गया, तब भगवान् ने बड़ी शांति और आत्मीयता से बताया कि नरक का मार्ग वही है। अर्थात् नरक का मार्ग क्रोध है।

(ङ) भगवान् बुद्ध के शांति और आत्मीयतापूर्ण कथन से सैनिक संयत हो गया। उसे अपनी भूल ज्ञात हो गई। उसने भगवान् बुद्ध के चरणों में गिरकर उनसे क्षमा माँगी। इस पर भगवान् बुद्ध ने बताया कि क्रोध पर नियंत्रण करना और अपनी भूल को समझकर उसके लिए पश्चाताप करना ही स्वर्ग का मार्ग है।


Final Thoughts –

आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –



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